
को-स्लीपिंग का मतलब है माता-पिता और बच्चे का एक ही बिस्तर पर या एक ही कमरे में सोना। यह परंपरा भारत समेत कई संस्कृतियों में गहराई से जमी हुई है। कुछ माता-पिता इसे बच्चों की सुरक्षा और मानसिक विकास के लिए अनिवार्य मानते हैं, जबकि कुछ इसे जोखिम भरा मानते हैं। को-स्लीपिंग की अवधारणा को समझने के लिए, इसके प्रकार, फायदे, नुकसान और विशेषज्ञों की राय पर चर्चा करना जरूरी है।
को-स्लीपिंग के प्रकार
को-स्लीपिंग कई तरह की हो सकती है, जिनमें प्रमुख हैं:
बेड-शेयरिंग: इसमें माता-पिता और बच्चा एक ही बिस्तर पर सोते हैं। यह नवजात शिशु के लिए बेहद सुविधाजनक होता है, खासकर स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए।
रूम-शेयरिंग: इसमें बच्चा और माता-पिता एक ही कमरे में अलग-अलग बिस्तरों पर सोते हैं। यह तरीका बच्चे की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अपनाया जाता है।
अटैच्ड क्रिब: इसमें बच्चे का बिस्तर माता-पिता के बिस्तर से जुड़ा रहता है, जिससे माता-पिता को बच्चे की देखभाल में आसानी होती है।
को-स्लीपिंग के फायदे
शिशु के लिए फायदे
बेहतर नींद: माता-पिता की उपस्थिति शिशुओं को सुरक्षा का एहसास कराती है, जिससे उनकी नींद की गुणवत्ता बेहतर होती है।
कम रोना: जो बच्चे अपने माता-पिता के साथ सोते हैं, वे अकेले सोने वाले बच्चों की तुलना में कम रोते हैं और अधिक शांत रहते हैं।
बेहतर शारीरिक विकास: को-स्लीपिंग से शिशुओं को अधिक बार स्तनपान का अवसर मिलता है, जिससे उनका इम्यून सिस्टम मजबूत होता है और संपूर्ण विकास में मदद मिलती है।
माता-पिता के लिए फायदे
बेहतर नींद: जिन माता-पिता के बच्चे उनके साथ सोते हैं, वे भी अधिक चैन की नींद ले पाते हैं क्योंकि उन्हें बार-बार बच्चे की स्थिति जांचने के लिए नहीं उठना पड़ता।
मजबूत रिश्ते: को-स्लीपिंग से माता-पिता और बच्चे के बीच भावनात्मक संबंध गहरा होता है, जिससे बच्चे को अधिक सुरक्षित और प्यार भरा माहौल मिलता है।
सुविधाजनक: छोटे बच्चों की रात में देखभाल करना आसान हो जाता है, खासकर स्तनपान कराने वाली माताओं के लिए।
किस उम्र तक बच्चों को साथ सुलाना चाहिए?
इसका कोई तय नियम नहीं है। अमेरिकन एकेडमी ऑफ पीडियाट्रिक्स का सुझाव है कि माता-पिता को अपने बच्चे के साथ कम से कम 6 महीने तक एक ही कमरे में लेकिन अलग बिस्तर पर सोना चाहिए। कुछ विशेषज्ञ इसे 2 साल तक जारी रखने की सलाह देते हैं, जबकि कुछ इसे और अधिक समय तक उपयुक्त मानते हैं।
को-स्लीपिंग के नुकसान
SIDS (Sudden Infant Death Syndrome) का खतरा: बेड-शेयरिंग से शिशुओं में SIDS का खतरा बढ़ सकता है, खासकर अगर माता-पिता धूम्रपान करते हैं, शराब पीते हैं या बच्चा समय से पहले जन्मा हो।
दुर्घटनाओं का खतरा: बिस्तर से गिरने या माता-पिता के दबाव में आ जाने का खतरा बना रहता है।
पर्सनल स्पेस की कमी: माता-पिता का व्यक्तिगत समय और गोपनीयता प्रभावित हो सकती है, जिससे उनकी सेक्स लाइफ पर असर पड़ सकता है।
बच्चे की निर्भरता: कुछ बच्चों को माता-पिता के साथ सोने की आदत लग जाती है, जिससे वे आगे चलकर अकेले सोने में परेशानी महसूस कर सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय
भाषा और बाल विकास विशेषज्ञों के अनुसार, को-स्लीपिंग के फायदे और नुकसान बच्चे की जरूरतों, पारिवारिक परिस्थितियों और पालन-पोषण के तरीकों पर निर्भर करते हैं।
डॉ. अमृता शर्मा, एक प्रसिद्ध बाल रोग विशेषज्ञ, कहती हैं, “अगर माता-पिता अपने बच्चे के साथ सुरक्षित तरीके से सोते हैं, तो यह उनके भावनात्मक संबंधों को मजबूत कर सकता है। लेकिन SIDS के खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।”
प्रोफेसर राजीव मल्होत्रा, बाल विकास विशेषज्ञ, बताते हैं कि “को-स्लीपिंग उन बच्चों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद है, जिन्हें अधिक सुरक्षा की जरूरत होती है। लेकिन उन्हें धीरे-धीरे अकेले सोने की आदत डालनी चाहिए।”
FAQs
1. क्या बेड-शेयरिंग और रूम-शेयरिंग समान हैं?
नहीं, बेड-शेयरिंग में माता-पिता और बच्चा एक ही बिस्तर पर सोते हैं, जबकि रूम-शेयरिंग में वे एक ही कमरे में लेकिन अलग-अलग बिस्तरों पर सोते हैं।
2. SIDS से बचने के लिए क्या करें?
बच्चे को पीठ के बल सुलाएं, बिस्तर पर मुलायम तकिए और भारी कंबल न रखें, और धूम्रपान व शराब से दूर रहें।
3. क्या को-स्लीपिंग से बच्चे के मानसिक विकास पर असर पड़ता है?
हां, सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं। यह माता-पिता की पालन-पोषण शैली पर निर्भर करता है।
4. क्या को-स्लीपिंग हर बच्चे के लिए सही है?
नहीं, हर बच्चे की जरूरतें अलग होती हैं। अगर बच्चा अकेले सोने में सहज है, तो उसे बेड-शेयरिंग की जरूरत नहीं हो सकती।
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