Parenting Tips: बच्चों को बात-बात पर डांटना पड़ सकता है भारी, जानें इससे होने वाले नुकसानों को 

अत्यधिक डांट-फटकार बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। सकारात्मक पेरेंटिंग अपनाकर हम उनके आत्मविश्वास और खुशहाली को बढ़ा सकते हैं।

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By Nutan Bhatt

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Parenting Tips: बच्चों की परवरिश एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण जिम्मेदारी है। हर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे अच्छे संस्कार, शिक्षा और व्यवहार सीखें। इसके लिए वे अक्सर अनुशासन का सहारा लेते हैं, जिसमें डांटना या फटकारना भी शामिल है। हालांकि, अत्यधिक डांट-फटकार बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है। इस लेख में, हम जानेंगे कि बच्चों को बार-बार डांटने से क्या नुकसान हो सकते हैं और सकारात्मक पेरेंटिंग (parenting tips) के लिए कौन-से उपाय अपनाए जा सकते हैं।

बच्चों को बार-बार डांटने के नकारात्मक प्रभाव

  1. आत्मविश्वास की कमी: लगातार डांटने से बच्चों में आत्म-सम्मान की कमी हो सकती है, जिससे वे अपने आप को कमतर समझने लगते हैं। यह उनके आत्मविश्वास को प्रभावित करता है और वे सामाजिक स्थितियों में असहज महसूस कर सकते हैं।
  2. मानसिक स्वास्थ्य पर असर: अध्ययनों से पता चला है कि बार-बार डांटने से बच्चों में तनाव, चिंता और अवसाद के लक्षण विकसित हो सकते हैं। यह उनके मानसिक स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और लंबे समय में गंभीर समस्याओं का कारण बन सकता है।
  3. आक्रामक व्यवहार: अत्यधिक डांट-फटकार से बच्चे चिड़चिड़े और गुस्सैल हो सकते हैं। वे अपने गुस्से को दूसरों पर निकाल सकते हैं, जिससे उनके सामाजिक संबंध प्रभावित होते हैं।
  4. सीखने की क्षमता में कमी: डर और तनाव के माहौल में बच्चे नई चीजें सीखने से कतराते हैं। उनका ध्यान भटकता है और वे अपनी क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं कर पाते।
  5. पेरेंट्स से दूरी: लगातार डांटने से बच्चे अपने माता-पिता से दूर होने लगते हैं। वे अपनी भावनाएं साझा करने से कतराते हैं, जिससे पारिवारिक संबंधों में दूरी आ सकती है।

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सकारात्मक पेरेंटिंग के उपाय (positive parenting tips)

  1. सकारात्मक संचार: बच्चों से शांत और प्रेमपूर्ण तरीके से बात करें। उनकी भावनाओं को समझें और उन्हें अपनी बात खुलकर कहने का मौका दें।
  2. प्रशंसा और प्रोत्साहन: बच्चों की छोटी-छोटी उपलब्धियों की सराहना करें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और वे बेहतर करने के लिए प्रेरित होते हैं।
  3. नियम और सीमाएं निर्धारित करें: बच्चों के लिए स्पष्ट नियम और सीमाएं तय करें, ताकि वे समझ सकें कि उनसे क्या अपेक्षित है। यह अनुशासन बनाए रखने में मदद करता है।
  4. समय दें: बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताएं। उनकी गतिविधियों में शामिल हों और उन्हें महसूस कराएं कि वे आपके लिए महत्वपूर्ण हैं।
  5. स्वस्थ उदाहरण प्रस्तुत करें: बच्चे अपने माता-पिता से सीखते हैं। इसलिए, अपने व्यवहार में संयम, धैर्य और सकारात्मकता दिखाएं।

निष्कर्ष

बच्चों की परवरिश में अनुशासन आवश्यक है, लेकिन अत्यधिक डांट-फटकार से बचना चाहिए। सकारात्मक पेरेंटिंग के माध्यम से हम बच्चों के मानसिक और भावनात्मक विकास को सुदृढ़ कर सकते हैं, जिससे वे आत्मविश्वासी, खुशहाल और सफल व्यक्ति बन सकें।

Author
Nutan Bhatt
मैं नूतन भट्ट हूँ, शिवांग की माँ और mumbabysparsh.com की संस्थापक। एक नई माँ के रूप में, मैंने अपनी मातृत्व यात्रा के दौरान सीखे गए सबक और अनुभवों को साझा करने का फैसला किया। मेरा लक्ष्य है अन्य नई माओं को प्रेरित करना और उनकी मदद करना, ताकि वे इस चुनौतीपूर्ण और खुशियों भरी यात्रा में आत्मविश्वास से आगे बढ़ सकें। मेरे लेख बच्चों की देखभाल, स्वास्थ्य, और मातृत्व के सुखद अनुभवों पर केंद्रित हैं, सभी को हिंदी में सरल और सुगम भाषा में प्रस्तुत किया गया है। मैं आशा करती हूँ कि मेरे विचार और सुझाव आपकी मातृत्व यात्रा को और अधिक खुशहाल और सुगम बनाने में मदद करेंगे।

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