नवजात शिशु के बेहतर विकास के लिए अच्छी नींद मिलना बेहद ही जरूरी होता है। बेहतर नींद के लिए यह जरूरी है की शिशु के सोने की पोजीशन सही हो, यदि बच्चा सही पोजीशन में नही सोता है तो उन्हें सोने में असहजता महसूस हो सकती है। गलत पोजीशन में बच्चे को सुलाने से सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम (baby Ko Sulaane Ki Sahi Position) जैसी समस्याएं भी हो सकती हैं। ऐसे में कई लोगों को यह पता नही होता की बच्चे को किस तरीके से सुलाना सुरक्षित और बेहतर तरीका माना जाता है, तो चलिए जानते हैं की क्या है बच्चे के सोने का सही तरीका और माता-पिता को अपने बच्चे को किस पोजिशन में सुलाना चाहिए? इससे जुड़ी पूरी जानकारी।
0 se 12 mahine ke bache ko kese sulaye
नवजात शिशु के लिए सही स्लीपिंग पोजीशन का चयन बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह उनकी सुरक्षा और स्वास्थ्य के लिए प्रमुख अंतर कर सकता है। यहां कुछ सुझाव हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने शिशु को सही स्लीपिंग पोजीशन में सुला सकते हैं:
पीठ के बल सोना (Supine Position):
यह पोजीशन बच्चों के लिए सबसे सुरक्षित मानी जाती है, खासकर प्रीटर्म शिशुओं के लिए। इस पोजीशन में शिशु की पीठ बड़ी गद्दी पर होती है, जिससे संभावित है कि उसका चेहरा सीने की ओर रहे। यह स्थिति शिशु को सांस लेने में सहायक होती है और सडन इंफैंट डेथ सिंड्रोम के खतरे को कम करती है।
पेट के बल सोना (Prone Position):
यह पोजीशन नवजात शिशुओं के लिए अधिक असुरक्षित हो सकती है, क्योंकि इसमें शिशु के जबड़े पर दबाव पड़ सकता है जो उसके सांस लेने को कठिन बना सकता है। इस पोजीशन में शिशु का ऑक्सीजन प्राप्ति भी कम हो सकती है, जिससे उसके स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है।
एक तरफा सोना (Side-Lying Position):
यह भी एक अच्छा विकल्प (safe sleeping position for babies) हो सकता है, खासकर जब शिशु को पीठ के बल सोना असहज लगता हो। तो आप इस पोजीशन में शिशु को एक तरफ करके सुला सकते है, जिससे उसकी सांस लेने की प्रक्रिया को सुधारा जा सकता है।
एक्सपर्ट्स के अनुसार बच्चे को सुलाते समय इन बातों का रखें ध्यान
विशेषज्ञों के अनुसार बच्चे को सुलाते समय (Bacho Ko sulane ka tarika) उसके आस-पास की चीजों का मुख्य रूप से ध्यान देना चाहिए, ऐसी कुछ जरूरी बाते निम्नलिखित है।
- बच्चे के लिए सोने का एक निश्चित समय तय करें और इसे प्रतिदिन पालन करें। इससे बच्चे का शरीर उस समय सोने के लिए तैयार हो जाता है।
- पेरेंट्स को अपने बच्चों को ज्यादा नरम गद्दे पर बच्चे को नही सुलाना चाहिए। इससे उनको सोने में परेशानी हो सकती है।
- सोने से पहले कोई बच्चों को आप कहानी सुनाएं या हल्के संगीत का प्रयोग करें।
- बच्चे के सोने के स्थान पर कोई खिलौना, तकिया, या कंबल न रखें, जो बच्चे की सांस में रुकावट पैदा कर सकते हैं।
- कमरे का तापमान न ज्यादा गर्म हो और न ही ठंडा। एक आरामदायक तापमान सुनिश्चित करें जो बच्चे के लिए आरामदायक हो।
- बच्चे को आरामदायक और मौसम के अनुसार कपड़े पहनाएं। बहुत ज्यादा कपड़े पहनाने से बच्चे को गर्मी हो सकती है, जो नींद में बाधा डालती है।
- बच्चे को सुलाते समय लाइट हमेशा डिम रखनी चाहिए, तेज रोशनी में बच्चे को नींद आने में परेशानी हो सकती है।
- अगर बच्चे को सुलाने से पहले स्तनपान कराया है, तो उसे डकार दिलाना सुनिश्चित करें। इससे पेट की गैस निकल जाती है और बच्चे को आराम से नींद आ सकती है।
- बच्चे की नींद के संकेतों को पहचानें, जैसे आंखें मलना, जम्हाई लेना, या सुस्ती दिखाना। इन संकेतों को देखते ही उसे सोने के लिए तैयार करें।
समय के साथ बदलता है बच्चे की नींद का पैटर्न
शुरुआती दिनों में नवजात बच्चे की नींद का पता लगना की उसे कितना सोना चाहिए, कब सोना चाहिए थोड़ा मुश्किल होता है जबकि आप अस्थायी नींद की समस्याओं का सामना कर सकते हैं। याद रखें कि रात का समय आपके शिशु के साथ शांति से बिताने और उन्हें सुरक्षित महसूस कराने का एक विशेष समय हो सकता है। शिशु को घड़ी के अनुसार नहीं सोना पड़ता है आपको अपने नवजात शिशु के सोने के नियम को समझने में कुछ समय लग सकता है हालांकि एक बार जब आप उनकी सोने की आदतों के अभ्यासी हो जाते हैं, तो विचार बदल सकते हैं। यहां एक मार्गदर्शिका है कि उनके नींद के नियम कैसे बदल सकते हैं:
- 0-3 महीने पहले कुछ महीनों में, नवजात शिशु अधिकांश अवधि में सोते हैं। नींद उनके शारीरिक और मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। नवजात शिशु की नींद की अवधि भिन्न-भिन्न होती है, लेकिन यह आमतौर पर 18 घंटे तक हो सकती है। उनकी नींद दिन और रात में छोटे अवधि में वितरित होती है, क्योंकि उन्हें बार-बार दूध पिलाने की आवश्यकता होती है। रात में उनकी अधिकांश नींद करने की प्रवृत्ति हो सकती है, लेकिन पूरी रात सोना असामान्य होता है।
- 3-6 महीने जब आपका शिशु बड़ा होता है, इस समय के दौरान शिशु के दूध की आवश्यकता कम होने लगती है। चार महीने तक, शिशु रात में अधिक समय तक सोना शुरू कर सकता है। तीन से छह महीने की उम्र में, बच्चे दिन में लगभग 3 से 4 घंटे और रात में 8 या इससे अधिक घंटे सो सकते हैं। जब वे बड़े होते हैं, उनकी झपकी की आवश्यकता कम होती है।
- 6-12 महीने छह महीने की आयु से, बच्चे को रात में दूध की ज़रूरत नहीं रहती है, कुछ बच्चे रात में 12 घंटे तक सो सकते हैं।
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शिशु को नींद न आने का कारण
शिशु की नींद एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर हर माता-पिता को ध्यान देना चाहिए। बच्चे की सही नींद उसके स्वास्थ्य और विकास के लिए अत्यंत आवश्यक होती है। हालांकि, कई माता-पिता इस समस्या से गुजर रहे होते हैं जब उनका शिशु ठीक से सो नहीं पाता है। इस लेख में, हम इस समस्या के कुछ मुख्य कारणों को समझेंगे और इसे सुलझाने के कुछ सुझाव प्रस्तुत करेंगे।
कारण:
- नई पैरेंटिंग स्किल्स की कमी: नए माता-पिता के लिए शिशु की देखभाल और नींद सम्बंधित काम कठिन हो सकते हैं। यह उनके लिए एक नई प्रक्रिया होती है और समय लग सकता है तकि वे इसे सीखें।
- आवाज और दृश्यों का प्रभाव: कई बार घर में अधिक शोर या उज्ज्वलता होने से बच्चे को सोने में परेशानी हो सकती है।
- फिजिकल प्रॉब्लम: कभी-कबार बच्चे को दांत निकलने के दौरान या किसी अन्य स्वास्थ्य समस्या के कारण भी नींद आने में समस्या हो सकती है।
- भोजन की अवस्था: अगर बच्चे का भोजन उचित नहीं है, तो वह नींद में विचलित हो सकता है।
- रूटीन की कमी: बच्चे के लिए एक नियमित और स्थिर रूटीन होना आवश्यक है, जिससे उसे सोने की प्रक्रिया में आराम मिले।
समाधान:
- नींद के समय माहौल: बच्चे के लिए सोने का वातावरण शांत और आरामदायक होना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई अधिक उज्ज्वलता न हो, और बच्चे को धीरे-धीरे सोने की अनुमति दें।
- संयुक्त देखभाल: पारिवारिक सहायता और संयुक्त देखभाल से माता-पिता को नींद की समस्याओं का समाधान निकालने में मदद मिल सकती है।
- नियमित रूटीन: बच्चे के लिए नियमित रूटीन बनाना उसकी सुरक्षित और सुखद नींद के लिए महत्वपूर्ण है।
- स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाना: अगर आपका शिशु नींद के समय अधिक असहजित महसूस कर रहा है, तो स्वास्थ्य विशेषज्ञ से परामर्श करना उचित हो सकता है।
इन सुझावों का पालन करके, माता-पिता अपने शिशु को उसकी सही नींद प्राप्त करवा सकते हैं और उसके स्वास्थ्य और विकास को सुनिश्चित कर सकते हैं। नींद की समस्याओं को ठीक से समझकर, आप अपने शिशु के लिए समय-समय पर सुलझाव प्राप्त कर सकते हैं और उसकी खुशहाली में मदद कर सकते हैं।
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